Gunjan Kamal

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विदेश यात्रा

मेरे पति का तबादला जब पश्चिम बंगाल के कुचबिहार में हुआ तो मुझे मालूम ही नहीं था कि इस नाम का कोई शहर बंगाल में भी  है । हमलोग उस वक्त  झारखंड के हजारीबाग में थें । वही पर मैं एक प्राइवेट स्कूल में बतौर लाइब्रेरियन जाॅब कर रही थी । सीबीएसई की  इंस्पेक्शन टीम स्कूल में आने वाली थी इसलिए उस स्कूल की डायरेक्टर साहिबा ने मुझे उस वक्त स्कूल छोड़ने की इजाजत नहीं दी । मेरे पति को तों समय सीमा के भीतर कुचबिहार आकर ज्वाइन करना ही था क्योंकि  सरकारी नौकरी का सवाल जो था । मेरे पति अपने कर्मस्थली पहुंच चुके थे और मैं अपनी कर्मस्थली हजारीबाग में ही रहकर अपने कार्यों का निर्वहन कर रही थी । दो महीने बाद सीबीएसई की इंस्पेक्शन टीम नियत तिथि पर आई । उसने चारों तरफ घूम-घूम कर अपने कर्तव्यों की पूर्ति की और संतुष्ट होकर हमारे स्कूल से रवाना हुए ।


मुझे भी अगले ही दिन अपने कर्मस्थली से रवाना होना पड़ा क्योंकि मेरे पति मुझे लेने हजारीबाग आ गए थे और मैं  भी तो सीबीएसई टीम के लिए ही रूकी थी जो अच्छी तरह हो चुका था । हमने एक सप्ताह के भीतर ही हजारीबाग को अलविदा कह दिया और अगले दिन ही कुचबिहार पहुंच गए । यहां आकर अब नए सिरे से अपनी जिंदगी की गाड़ी चलानी थी । मेरे पति की नौकरी ही ऐसी है कि हर चार साल पर हमें एक स्थान से उठकर दूसरे स्थान पर जाना पड़ता है ।


" खानाबदोश   सी   हों   गई    है    जिंदगी


  हर चार साल बाद कभी यहां तो कभी वहां "


मेरी शादी २००४ में हुई । एक साल तो मैं ससुराल में ही रही उसके बाद से हर स्थानांतरण पर उनके साथ घूम रही हूॅं । सबसे पहले राजस्थान के जैसलमेर में गई उसके  बाद मेघालय फिर हजारीबाग और अभी मैं कुचबिहार में थी लेकिन कहते है ना कि हर व्यक्ति का सपना होता है कि वह अपनी जिंदगी  में कम - से - कम  एक बार तो विदेश यात्रा जरूर करें ।  हम मध्यवर्गीय लोग अमेरिका , लंदन , स्वीटजरलैंड तो जा नहीं सकते क्योंकि वहां जाने के लिए वीजा के साथ-साथ काफी पैसे भी चाहिए होता है जो हमारे पास तो बिल्कुल भी नहीं था । बच्चों की छुट्टियों में भी  हम किसी पर्यटन स्थल पर ना जाकर गांव  ही जातें थे ऐसे में अपने विदेश घूमने के  सपने को दिल में बंद कर मैंने उसमें बड़ा सा ताला लगा दिया था ।  


ऐसे ही जिंदगी कट रही थी कि अचानक ही एक दिन रात के समय बच्चों और पति ने मिलकर मुझे आश्चर्यचकित करा दिया । कहा कि हमारी हैसियत तत्काल  ऐसी  नहीं कि हम विदेश जा सकें लेकिन फिर भी हम विदेश जा सकते है । मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि तीनों के दिमाग में क्या खिचड़ी पक रही है ?


बेटी ने समझाना शुरू करते हुए कहा कि  मम्मा आप ही बताइए कि विदेश हम किसे कहते है ? मैंने कहा दूसरे देश को विदेश कहते है । उसने मुस्कुराते हुए कहा बिल्कुल सही । कल हम सब अपने देश के किसी स्थान पर घूमने नहीं जाएंगे बल्कि  दूसरे  एक  खुबसूरत  देश में जाकर उसकी खुबसूरती के नज़ारे अपनी यादों में कैद करेंगें । मैंने अपने पति की ओर देखा ।  पति  ने भी इशारों में अपनी ऑंखों को झपका कर अपनी मौन स्वीकृति दी । मैं अब भी नहीं समझ पा रही थी कि हम विदेश के नाम पर कहाॅं जा रहें है ?  तभी मेरा दस वर्षीय बेटा खुशी से नाचने लगा और नाचते - नाचते  गाते हुए कहने लगा  कल तो हम सभी भूटान जाएंगे .........    रें       बाबा      भूटान जाएंगे ............।


मैंने भूगोल की किताब में पढ़ा था कि भूटान हिमालय पर बसा साउथ एशिया का बहुत छोटा पर महत्‍वपूर्ण देश है  जो कि तिब्‍बत और हमारे देश भारत के बीच में स्थित है। भूटान को  दुनियां  के सबसे खुशहाल देशों में से एक माना जाता है और तो और इस देश की कला और सभ्यता - संस्कृति में नयापन देखने को मिलता है । मैंने सबसे सुन रखा था कि सबसे खुश लोग भूटान में रहते हैं  और तों और भूटान पूरे विश्व का पहला और एकमात्र कार्बन का अवशोषण करने वाला देश है। यहां कार्बन का अवशोषण उत्पादन की तुलना में काफी अधिक होता  है।


यह सब चीजों के कारण इस देश को देखने की मेरी उत्सुकता बढ़ गई थी ।


भूटान भारत का  पड़ोसी देश है और मैत्रीपूर्ण संबंध होने के कारण वहाॅं जाने के लिए हमें किसी वीजा की जरूरत नहीं पड़ती है इसलिए हमें वहाॅं‌ जाने के लिए वीजा भी नहीं बनवाना  था । चूंकि हम जहाॅं पर रहें थे वहां से भूटान ज्यादा दूर नहीं था । हम छः - सात घंटे के अंदर में ही भूटान पहुॅंच सकते थे ।


हम अगले दिन ही सुबह आठ बजे  वैन से रोड के रास्ते कुचबिहार से भूटान जाने के लिए  निकल पड़े । एक घंटे से कम समय में ही  अलीपुर द्वार  आ गया । वही पर एक चाय की दुकान पर बैठकर मैंने और मेरे पति ने चाय पी और  बिस्किट खाएं   , बच्चों ने बिस्किट कुरकुरे और कोल्ड ड्रिंक  के आनंद लिए । नाश्ता कर हम आगे के सफर के लिए निकल पड़े । हम आगे बढ़ते जा रहे थे । आगे जाने पर  रास्ते के दोनों तरफ बड़े-बड़े चाय बागान दिखाई देने लगे  हैं। उनमें  काम करते लोग तन्मयता से चाय की पत्तियां तोड़ते नजर आ रहे थे। बच्चों ने जिद की कि हमें चाय बगान नजदीक से देखना हैं । पहले तो मेरे पति ने इंकार कर दिया लेकिन मेरे ‌कहने पर मान गए । हमने वहाॅं वैन से उतर कर चाय के बागानों के बीच की क्यारियों में जाकर बहुत सारी तस्वीरें खिंचवाई । मेरी आदत है कि मैं जहां भी जाती हूॅं । वहाॅं की यादों को तस्वीरों के माध्यम से यादों में कैद कर लेती हूॅं ।


चाय बगानों की यादों को कैद कर हम फिर से वैन में बैठकर आगे चल पड़े ।  बारिश इस इलाके में बहुत होती है  इसलिए अधिकर घरों को जमीन से कुछ फीट ऊंचा उठाकर बनाया गया था ताकि पानी का जमाव ना सके । रास्ते में हमने देखा कि  कंक्रीट के बने मकान पक्के खंभों पर बने थे तो कहीं पर  बांस के बने घरों को बांस की ही बल्लियों पर ऊपर उठाकर बनाया गया था । वैसे ऐसे घर हमने कुचबिहार में भी देखें थे तों सबने इसे देखने में ज्यादा रूचि नहीं दिखाई ।  इसी तरह हरियाली और पेड़-पौधों को देखते हुए हम जयगांव पहुॅंचे


जयगांव भूटान के साथ देश की सीमा पर स्थित है । भूटान का मुख्य भूमिगत प्रवेश जयगांव से होता है और भूटान गेट दोनों देशों  यानी कि हमारे देश भारत और भूटान को अलग करता है। सड़क रास्ते से भूटान जाने के लिए हमें जयगांव से ही जाना था ।  जयगांव भूटान की सीमा पर आखिरी भारतीय शहर है। वहां के  शोर -  शराबे और ट्रैफिक जाम हमारे  दूसरे भारतीय शहर की तरह ही थे । ट्रैफिक जाम भी था वहाॅं पर ।  हमारी वैन  धीरे - धीरे  घिसटते  - फिसलते जयगांव से लगी भूटान की सीमा पर पहुंची । दो देशों के बीच सीमा रेखा की जैसी तस्वीरें अब तक देखी थी उन सबसे बिल्कुल उलट थी । इस सीमा पर  ना तो हथियारबंद जवान ही दिखाई दें रहा था और ना ही सुरक्षा के ताम - झाम और तो और कंटीले  तारों की बाड़ भी हमें कहीं देखने को नहीं मिली ।  हमारी वैन  भूटान की सीमा पर लगे गेट पर पहुॅंची । वहाॅं  खड़ा भूटान पुलिस के  जवान ने हमसे पूछा   कि हमें कहाॅं  जाना है  ? हमने बताया  और भूटान में दाखिल हो गए । जैसे ही  हमारी वैन  भूटान में दाखिल हुई वैसे ही हम सबके मोबाइल फोन पर हमारे जियो का सिग्नल गायब हो गया । हम अब अपने फोन से किसी से बात नहीं कर सकते थे । हम  भूटान में दाखिल क्या हुए ? हमें लगा कि  एकदम से सब कुछ जैसे शांत हो गया है ।  अभी तो  कुछ देर  पहले जब  हम  जयगांव में थे इतना  शोर - शराबा , होड़ - हल्ला ,  भीड़ भरी सड़कें और ट्रैफिक जाम हमने  देखा था और अभी  ना तो भीड़ थी और ना ही कोई शोर- शराब और ट्रेफिक जाम तो बिल्कुल भी नहीं था । जैसे - जैसे हम आगे बढ़ रहें थे वैसे - वैसे हम शोर-शराबा और ट्रैफिक जाम को भूलते जा रहें थें क्योंकि भूटान की  प्राकृतिक सुंदरता और मनोरम दृश्‍य हम सभी को  अपनी ओर आकर्षित  कर रही थी ।  भूटान हिमालय की पहाड़ियों से ढका हुआ  शहर है  ।  हमें  भूटान आकर सबसे पहले   फुएन्त्शोलिंग के इमिग्रेशन ऑफिस में रुकना पड़ा क्योंकि यहीं पर  भूटान घूमने का परमिट आसानी से मिलता है । हमने यही पर अपने  भारतीय रुपयों को भूटानी नोंग्त्रुम में बदलवा दिया क्योंकि हमें यहाॅं  के रूपयों की जरूरत शायद पड़ जाएं ।


मैंने पढ़ा था कि भूटान में पेड़ लगाना लोकप्रिय है क्योंकि यह  लंबे जीवन, सुंदरता और सहानुभूति का प्रतीक माना जाता है  और तों और वर्ष २०१५  में भूटान ने मात्र एक घंटे में ५०,०००  पेड़ लगाने का गिनीज़ विश्व रिकॉर्ड बनाया था तभी तो चारों तरफ हरियाली ही हरियाली दिख रही थीं ।


हमारी वैन आगे बढ़ रही थी ।  भूटान की संस्कृति से हिसाब से वहाॅं की  दूकानें  और घर थे ।  सब कुछ इतना व्यवस्थित और साफ-सुथरा था कि हम सब सड़क , दुकानें और घर ही देखने में लग गए । हमारी वैन और जो भी गाडियां सड़क पर चल रही थी वह सभी  शांति से चल रही थी क्योंकि इस देश का एक नियम यह है कि यहाॅं  गाडियों के हॉर्न का इस्तेमाल  नहीं किया जाता है । हमने तो एक बार भी किसी भी गाड़ी के हाॅर्न नहीं सुने । हमारे देश भारत में तो इतनी गाड़ियों के हाॅर्न का शोर होता है कि मेरा तों सिर ही दर्द करने लगता है । रह - रह कर मन में यह सवाल आ रहा था कि भारत के इतना नजदीक होने के बाद भी इन दोनों देशों के बीच कितना अंतर है ?  


एक तरफ  शोर - शराबा  और गंदगी के बीच जीती जिंदगियां तो दूसरी तरफ शांति और साफ - सुथरा माहौल ।


फुनशलिंग से कुछ दूर आगे जाने पर  करबंदी बौद्ध मठ  था  जिसे  रिचेनडिंग मठ  भी कहते हैं । उस मठ में करीब एक किलोमीटर तक का सफर हमें चलकर करना पड़ा । वहाॅं  पहुॅंच कर उस जगह का  जबरदस्त नजारा हमें  देखने को मिला। वहाॅं से हमें नीचे देखने पर  दूर- दूर तक बंगाल के हरे- भरे जंगल दिखाई दे रहे थे और  चारों तरफ दिखाई दे रहे दृश्यों ने हम चारों का मन मन मोह लिया था । उसी के साथ घर भी दिखाई दे रहें थे । साथ गए हुए लोगों में से एक ने बताया कि वहाॅं के राजा का फरमान है कि यहाॅं के घर और इमारतें भूटान के कानून के अनुसार ही बनेंगे । कहने का तात्पर्य यह है कि वहाॅं के लोगों को अपने घर को  बाहर से भूटानी स्थापत्य के हिसाब से ही बनाना पड़ता है  । सारी  रंग - बिरंगी इमारतें बहुत सुन्दर दिखाई दे रही थी ।


  पहाड़ी क्षेत्र होने  के कारण भूटान में  भूकम्प की संभावना काफी हद तक बनी रहती हैं  यही वजह है कि  यहाॅं  कानून बनाया गया है कि  कोई भी घर हो या इमारत वह  पाॅंच मंजिल से ऊॅंची बनाई  नहीं  जा  सकती हैं और  साथ ही यह  भूकम्परोधी तकनीक से भी बना होना चाहिए ।


मठ भी उसी तकनीक से बनाए गए थे । हमने बाहर से उस मठ में रखे भगवान को  देखा क्योंकि जहां उनके भगवान रखें गए थे वह दरवाजा  बंद था । उस मठ के आसपास  चारों तरफ हरियाली थी जिस कारण धूप में भी हमें पेड़ की छाया और थोड़ी -  बहुत प्राकृतिक हवा तो मिल ही रही थी । हमने वहाॅं ढेर सारी तस्वीरें खिंचवाई । मठ के आगे में बड़ा सा मैदान था जिसमें लोग जमीन पर बैठकर पेड़ की छांव का आनंद लें रहें थे । हम सब भी बैठे हुए थे तभी एक छ: - सात साल के लड़के की गेंद हमारे पास आकर रूक गई ‌। मैंने गेंद अपने हाथ में उठा ली । उस लड़के  ने मेरे पास आकर कुछ कहा जिसे मैं समझ नहीं सकी । हमारे साथ आए भैया ने हमें कहा कि यह लड़का अपनी भाषा बोल रहा है । हमारी भाषा जैसे हिंदी , अंग्रेजी , बंगाली , ...... है वैसे ही भूटान की भाषा जोंगखा है ।


उस भैया को यह भाषा आती थी तभी तों उन्होंने उस लड़के से बातें की और वह लड़का भी  बिना डरे अपनी छोटी ‌- छोटी ऑंखो से हॅंसते हुए बातें कर रहा था । जब भी वह हॅंसता उसकी ऑंखें बंद जैसी दिखने लगती । कुछ देर बातें करने के बाद वह लड़का अपनी गेंद लेकर  चला गया  ।


हमें चूंकि उसी दिन वापस लौट कर कुचबिहार आना  था इसलिए हमने क्षभूटान  की  बाजारों  को  देखने के लिए ड्राइवर से  कहा कि हमें दुकान की तरफ ले जाएं । हमने वहीं पर आइसक्रीम खाई । मजेदार बात यह रही कि भूटान के दुकानदारों ने हमसे भारतीय रूपया लें भी लिया लेकिन एक दुकानदार ने हमें भारतीय रूपया देने के बाद बचें  पैसे वहाॅं के रूपए में लौटाएं । मैंने ‌कहा कि इन रूपयों का मेरे देश में  कोई मोल नहीं । बच्चों ने कहा कि यादों के लिए इन रूपयों को  रख लेते हैं इसतरह मेरी पर्स में आज भी वह भूटान का बीस  रूपया रखा हुआ  है ।  एक चीज मैंने वहाॅं की दुकानों पर टंगा  देखा और वह यह था कि  वहाॅं  की  प्रत्येक दुकान पर वहाॅं के राजा की तस्वीर टंगी हुई थी और शायद यह वहाॅं के नियमों - कानूनों के अंतर्गत आता हों सभी दुकानदारों को इन नियमों का पालन करना पड़ता हों खाना हमने वहीं बाजार के एक रेस्तरां में ही खाई बच्चों को वहाॅं का खाना कुछ खास अच्छा नहीं लगा वें कह तो नहीं रहें थे लेकिन उनके चेहरे हमें यही बयां कर रहे थे


भूटान की उन साफ - सुथरी सड़कों और वहाॅं की खुबसूरत वादियों को छोड़ कुछ घंटों बाद हम जयगांव की शोर - शराबों और ट्रैफिक जाम में अपने आप को यह समझा रहें थे कि कुछ घंटों के लिए ही लेकिन हमने शोर - शराबों और गंदगी भरी जिंदगी से ऊपर भी ऐसा देश  देखा हैं जिसे देखने की चाहत शायद हर व्यक्ति की होगी और हमारे लिए ... सबकी छोड़ो ... सिर्फ मेरे लिए विदेश देखना और वहाॅं कि आबोहवा में एक दिन भी सांस लेना खुली ऑंखो द्वारा देखें गए स्वप्न से कम नहीं था और इस स्वप्न को मैंने जिया था हम जिस रास्ते से भूटान गए थे उसी रास्ते से वापस कुचबिहार लौट भी आएं


भूटान का प्राकृतिक सौंदर्य और वहाॅं के मठों की आबोहवा में शांति और सुकून का ऐसा समागम है जिसे आज की भागदौड़ और चकाचौंध वाली दुनियां में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को यह आबोहवा मिलनी ही चाहिए और इसे प्राप्त करने के लिए उसे अपनी व्यस्त दिनचर्या से कुछ दिन निकाल कर भूटान भ्रमण अवश्य करना चाहिए


                                                   


                                             धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻

" गुॅंजन कमल " 💗💞💓


पर्यटन दिवस प्रतियोगिता हेतु 


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# लेखनी 

# लेखनी  लेख 


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4 Comments

Niraj Pandey

11-Oct-2021 07:29 PM

बहुत ही बेहतर लिखा है आपने

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🤫

29-Sep-2021 02:56 PM

बहुत सुंदर...सजीव वर्णन...लिखा आपने... बहुत बढ़िया

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Seema Priyadarshini sahay

28-Sep-2021 12:25 PM

बहुत ही खूबसूरत वर्णन

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